बीजेपी का इतिहास


इसमें कोई संशय नहीं है कि आज बीजेपी देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है। और इस पार्टी ने आज 303 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत पा चुकी
जय प्रकाश नारायण 
है जबकि एक समय सत्ता का पर्याय रहे कांग्रेस की यहीं स्थिति होती थी। मगर यह कोई एक दिन या एक वर्ष में ऐसा नहीं हुआ बल्कि निरंतर संघर्षों के कारण ये सम्भव हो सका है । जानते है आज देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी यानि भारतीय जनता पार्टी के इतिहास के बारे में ।

इतिहास

भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 1980 में हुई थी और यह पहले भारतीय जनसंघ के नाम से जानी जाती थी जिसकी स्थापना श्यामाप्रसाद मुर्खजी ने 1951 में की थी। यानि 1951 से लेकर 1977 से लेकर इस पार्टी को भारतीय जनसंघ के नाम से जाना जाता था और फिर 1977 के बाद 1980 तक यह जनता पार्टी के नाम से जानी जाती थी। फिर 1980 के बाद यह भारतीय जनता पार्टी बनी जिसे बीजेपी के नाम से जाना जाने लगा।
क्या आप जानते है आज जिस बीजेपी को पूरे देश में 303 सीटें मिलीं है उसी बीजेपी को 1984 के आम चुनाव में महज 2 सीटें ही मिली थी ।
2 सीटों से 303 सीटों तक का सफर लम्बा और चुनौती भरा था।

भारतीय जनता पार्टी प्रारम्भ से ही यानि जनसंध के जमाने से ही हिन्दुत्व अवधारण की पक्षधर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानि आरएसएस की ईकाई है जिस कारण इस पर सांम्प्रदायिक पार्टी होने का आरोप लगता रहा है।

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भारतीय जनसंध को 1951 के आम चुनाव में कोई खास सफलता तो नहीं मिली मगर इसने जनता के बीच अपनी अच्छी खासी पहचान बना ली। भारतीय जनसंघ ने प्रारम्भ में कश्मीर एकता, जमींदारी प्रथा का विरोध और परमिट लाईसेंस कोटा जैसे मुद्दे पर जोर दिया और राज्यों में अपनी पैठ बनाना शुरू किया मगर पार्टी को कोई खास सफलता नहीं मिली।
जनसंघ ने जय प्रकाश नारायण का समर्थन किया जिन्होंने इंदिरा गांधी के खिलाफ नारा दिया था कि सिंहासन हटाओ जनता आती है।

इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल की घोषणा की इस दौरान जनसंघ के बहुत से नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल में डाला गया ।

फिर 1977 के में आपात काल की समाप्ति के बाद आम चुनाव में काग्रेस पार्टी की हार के बाद मोरारजीदेसाई भारत के प्रधान मंत्री बने जिसमें लालकृष्ण आडवानी को सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया । तथा अटलबिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया। दुर्भाग्य वश मोरारजी देसाई की सरकार 30 महिने के बाद आपसी गुट बाजी के चलते धाराशायी हो गयी / 


जन संघ का नाम भारतीय बना जनता पार्टी हुआ 

श्यामा प्रसाद मुखर्जी 

और 1980 के चुनावों में विभाजित जनता पार्टी की हार हुई । यहीं से भारतीय जनसंध जनता पार्टी से अलग हुआ और इसने अपना नाम बदलकर भारतीय जनता पार्टी रखा।
अटलबिहारी वाजपेयी पार्टी के अध्ययक्ष बने । इस पार्टी में मुरली मानोहर जोशी और लालकृष्ण आडवानी इसके प्रमुख नेता रहे।

पंजाब और श्रीलंका को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने फिर इंदिरा गांधी की सरकार की आलोचना की।

1984 में इंदिरा गाधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को तीन चौथाई बहुमत मिला तो भाजपा को सिर्फ दो सीटें ही मिली। यह बीजेपी के लिए झटका था । फिर चुनाव सुधारों की बीजेपी ने वकालत शुरू कर दी। 

बंग्लादेश से आ रहे घुसपैठियों तथा बोफोर्स तोप सौदे को लेकर राजीव गांधी को बीजेपी ने घेरना प्रारम्भ किया
अटल बिहारी वाजपेयी 

1989 में भारतीय जनता पार्टी ने जनता दल के विश्व नाथ प्रताप सिंह को बाहर से समर्थन दिया चूकिं बीजेपी की सीटें बढ़कर 89 हो चुकी थी । मगर इस फैसले से बीजेपी ने गलत फैसला बताया ।

भाजपा  को मिला नया मुद्दा 


इस बीच आरक्षण मुद्दा गरमाया और मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू की। भाजपा को लगा कि वे अपना वोट बैंक खड़ा करना चाहते हैं । तो उसने फिर हिदुत्व का मुद्दा लेकर चुनाव मैदान में तैयारी शरू कर दी। मुद्दा था बाबरी मस्जिद का । अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राममंदिर बनाने के लिए भाजपा ने जनता को वोट मांगना शुरू कर दिया और उस वक्त लाल कृष्ण आडवानी ने सोमनाथ से अयोध्या तक एक रथ यात्रा की और कार सेवकों की मदद से आयोध्या का विवादित ढांचा गिरा दिया।
मंडल का जवाब कंमडल से दिया ।
इस घटना से लालकृष्ण आडवानी गिरफ्तार हुए। भाजपा ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया । परिणामस्वरूप विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिर गई। और चुनाव प्रचार के दौरान 1991 में राजीव गांधी की हत्या हो गई ।

चुनाव में बीजेपी की सीटें बढ़कर 119 हो गई इसका श्रेय राम मंदिर के मुद्दे को दिया जाने लगा। कांग्रेस को स्पष्ट बहुतमत नहीं मिला और नरसिंम्हा राव अल्पमत की सरकार चलाते रहे। भाजपा ने कांग्रेस का विरोध जारी रखा और फिर देश में आई मंदी के कारण सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई जिससे विदेशी कम्पनियों को भारत में निवेश करने का रास्ता साफ हो गया। भाजपा इस उदारीकरण की नीति का विरोध भाजपा करने लगी।

1996 चुनाव में भाजपा पहली बार एक बड़ी पार्टी बनकर उभरी मगर वह दूसरी पार्टियों के समर्थन से ही सरकार बनाने में कामयाब हो पायी। मगर लोकसभा में बहमत सिद्ध न कर पाने की सूरत में सरकार 13 दिन के बाद ही गिर गई । अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे। और कांग्रेस के बाहरी समर्थने से बने सरकारे जिसमें प्रधानमंत्री एच.डी.देवेगौड़ा और गुजराल थे वे भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके । 1998 में फिर चुनाव हुए भाजपा ने गंठबंधन करते हुए 181 सीटें पर अपनी बढ़त हासिल की । 

सीटों का तालमेल से सरकार तो बना ली अटलबिहारी वाजपेयी फिर प्रधानमंत्री बने मगर गठबंधन की प्रमुख दल एआइडीएमके की नेता जयललिता ने समर्थन वापस ले लिया तो अटल बिहारी की सरकार फिर गई ।

1999 फिर चुनाव हए 23 दलो के साथ साझा गठबंधन से साझा घोषणापत्र पर चुनाव लड़ा गया । इस गठबंधन को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन का नाम दिया गया जो आज एनडीए कहलाता है। फिर एन डीए को बहुमत मिला अटलबिहारी वाजपेयी तीसरी बार भारत के प्रधान मंत्री बने और वे एक मायने पहले गैर कांग्रेसी प्रधान मंत्री बने ।

फिर गुजरात दंगे और गुजरात में बेमिसाल सरकार का नेतृत्व करने वाले नरेन्द्र दामोदर मोदी को बीजेपी ने प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित किया और 2014 का चुनाव मोदी के नेतृत्व में लड़ा गया । अपने करिश्माई भाषण और जोरदार छवि वाले नरेन्द्र मोदी ने देश में एक नई जान दी । जो देश अब तक साझा सरकार, गठबंधन की मार से जूझ रहा था उसमें नरेन्द्र मोदी ने एक नई जान डाली ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार रथ यात्रा कर लालकृष्ण आडवानी ने बीजेपी की धमक बढ़ा दी थी। 2014 के आम चुनाव में बीजेपी को  बहुमत मिला और नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बने जो आज पर्यन्त है। 2019 चुनाव में भी बी जे पी को अच्छी  बडत मिली और पुरे देश में इसे 303 सीटें देकर जनता ने इस पार्टी पर विश्वास जताया है 

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